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बेतरतीब विचार आते रहे

अकेली जिंदगी की दास्तां
अकेली जिंदगी की दास्तां
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एक सवाल मन में काफी दिनों से उमड़-घुमड़ रहा है, कोई जवाब नहीं, कोई हल नहीं, उपापोह जारी है. थोड़ी मुश्किल हो गयी है, मन लगातार कुछ ना कुछ सोचता जा रहा है और जवाब है कि नदारद. मुझे ये भी खयाल आ रहा है कि ऐसे ही कई बार बैठे-ठाले आप भी कुछ दुश्चिंताओं में घिर जाते होंगे तब कैसे उनसे पिंड छूटता होगा?


क्या मैं अपने मन में लगातार चल रहे विचारों से पीछा छुड़ा सकती हूं? शायद नहीं, क्यूंकि यही फालतू विचार कई बार मेरी ताकत सिद्ध होते रहे हैं. कुछ ऐसे निरर्थक विचार जो देखने में तो वाकई प्रोडक्टिव विचार नहीं लगते किंतु उनका अप्रत्यक्ष असर काफी गहरा होता है.


मुझे यही लगता है कि कई बार जो हम सोचते हैं उसका संबंध सीधे-सीधे हमारी जिंदगी पर तो नहीं होता लेकिन जिंदगी के किसी ना किसी मोड़ पर वे खयालात अपना प्रभाव जरूर दिखाते हैं.


आप भी मेरे इस अजीबोगरीब बेतरतीब विचार पर हंस रहे होंगे लेकिन आज मन में यही बात घूम रही थी सो आप तक पहुंचा दिया.

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