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लो मैं भी आ गई – Valentine Contest

अकेली जिंदगी की दास्तां
अकेली जिंदगी की दास्तां
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बहुत दिनों बाद जंक्शन के मंच पर वापस लौटी हूं लेकिन ये देखकर सरप्राइज्ड हुई कि यहॉ तो कई दिनों से घमासान मचा हुआ है. प्यार की होड़ मची है और मंच के धुरंधरों के साथ नौसिखिए भी हाथ आजमा रहे हैं. सोचती हूं कि मैं भी प्यार पे अपने विचार लिख कर कॉंटेस्ट की पार्टिसिपेंट बन जाऊं.


मेरी नज़र में प्यार एक ऐसी जरूरत है जो हर एक शख्स को रहती है. कोई भी प्यार से वंचित नहीं होना चाहता. प्यार के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले भी बहुत हैं और प्यार की खातिर दूसरों की जान लेने वाले भी बहुत. कोई जबरदस्ती प्यार करता है तो कोई रो-गिड़गिड़ाकर प्यार की तलाश में होता है.


हंसी तो तब आती है जब लोग वासनात्मक दृष्टि रखते हुए भी प्यार की बात करते हैं. ऐसे लोग नजर तो शरीर पर रखते हैं किंतु बातें वासना रहित करते हैं. एकबारगी तो आपको लगेगा कि यही है राइट च्वायस लेकिन हकीकत सामने आने में देर नहीं लगती.


प्यार का एक रूप ‘हड्डियां पसाने’ के रूप में भी सामने आता है. ये प्यार का वो रूप है जिसमें केवल प्रेमी फंसते हैं प्रेमिकाएं नहीं. प्रेमी बेचारे अपना खून-पसीना एक करके प्रेमिका को खुश करने की कोशिश करते रहते हैं. लेकिन प्रेमिकाएं केवल उनकी इस स्थिति का मज़ा लेती हैं.


आपने सुना होगा कि प्यार के परिंदे कभी किसी चीज के मोहताज नहीं होते. लेकिन इसे प्रैक्टिकली देखने पे ये लगता है कि प्यार करने वाले सबसे ज्यादा मोहताज नज़र आते हैं. उन्हें ही सबसे ज्यादा सपोर्ट की जरूरत होती है. ये हर बात पे रोना शुरू कर देते हैं.  दूर जाओ तो रोना, पास आओ तो रोना, कोई प्रेमी/प्रेमिका ना हो तो रोना, प्यार करने के बाद रोना. इसलिए हमने तो अपनी जिन्दगी का फलसफा तय कर लिया है कि प्यार करो जरूर मगर थोड़ा दूर से ही करना ताकि कभी रोना ना पड़े.

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