Menu
blogid : 2488 postid : 110

सारी गड़बड़ियों की वजह आप हैं !

अकेली जिंदगी की दास्तां
अकेली जिंदगी की दास्तां
  • 31 Posts
  • 601 Comments

शादी के बाद किसी स्त्री के जीवन में एक अजीब सी दुविधा की स्थिति आती है. पति, ससुराल, समाज और बच्चों के बीच उसका जीवन अपना नहीं रह पाता. अपने आस-पास के रिश्तों को खुश रखने के प्रयास में वो अपना वजूद खोती चली जाती है. शून्य की ओर बढ़ती स्त्री अस्तित्व विहीन होकर भी एक सटिसफैक्शन महसूस करती है. अपनी खुशी को मिटा कर खुश होने वाली स्त्री की पीड़ा सिर्फ वही महसूस कर पाती है.


एक विचित्र सा रियलाइजेशन फैक्टर काउंट करता है. एक एहसास, एक फीलिंग, एक भावना जिसमें सब कुछ खो के भी सब कुछ हासिल कर लेने का अनुभव. जहॉ अपना कुछ भी नहीं फिर भी सब कुछ अपना सा होता है. उसके रोम-रोम में, उसकी हर श्वास में, उसके मन के हर हिस्से में वही कोमल ममतामयी भावनाएं दस्तक देती हैं जिससे मनुष्य जाति निरंतर विकासमान रही है.


समर्पण और प्रेम की इस मिसाल के बावजूद कई बार स्त्री को उसका सही स्थान नहीं मिल पाता है. भोग्या से दासी तक का उसका सफर कितनी पीड़ा से भरा हुआ है, इसे बयान नहीं किया जा सकता. लेकिन जो बात सबसे हैरानी की है कि कुदरत की इस कृति ने कभी अपनी इस स्थिति के खिलाफ जाने की चेष्टा नहीं की बल्कि इसे ही प्राकृतिक समझ के अपनाया है. हॉ, ये अलग बात है कि उसकी इस परिस्थिति से फायदा उठाने वे लोग आ गए जिन्हें उसकी पीड़ा से कोई मतलब नहीं.


नारी को भड़काने और अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करने वालों की कमी नहीं. ऐसे लोग खतरनाक हैं समाज की संरचना के लिए, समाज की स्थिरता के लिए. नारी तो संतुष्ट है अपनी मातृत्व और ममतामयी स्थिति से, नारी को आता है संबंध निभाना, कर्तव्य की पूर्ति करना बशर्ते आप बीच में ना आएं.  आपका बीच में आना ही तो सारी गड़बड़ियों की वजह बन जाती है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh