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आज मैं आपबीती सुनाना चाहती हूं

अकेली जिंदगी की दास्तां
अकेली जिंदगी की दास्तां
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जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखी हैं मैने. अपनों का प्यार-दुलार, मां की गोद में सर रख के सारे गम सारी चिंताएं भूल जाना, पापा का प्यार जिसे मैं हमेशा मिस करती हूं. अपनी प्यारी बिटिया को लेके मार्केटिंग के लिए जाना उनका प्रिय शगल हो चुका था.


बात उन दिनों की है जब मैं क्लास एट्थ में लखनऊ में पढ़ रही थी. आप सोच सकते हैं कि उस समय मेरी उम्र क्या रही होगी. लेकिन शारीरिक डेवलपमेंट थोड़ी ज्यादा थी. दुनियादारी क्या होती है मुझे बिलकुल मालूम नहीं थी. कोई लड़का देखता तो मैं उसे चिढ़ा देती थी. अंकल टाइप के लोग मुझे अच्छे लगते थे और उनसे कोई हिचक या संकोच नहीं था मुझे.


और यही अंकल टाइप का व्यक्ति मेरे लिए बुरे अनुभव वाला सिद्ध होगा ये मुझे आज भी सोचकर घिन आती है. मैं जिस स्कूल में पढ़ती थी(माफ कीजिएगा नाम मैं नहीं बताना चाहती) वहॉ स्पोर्ट्स के लिए जिन्हें अप्वाइंट किया गया था उनकी उम्र चालीस के आसपास रही होगी. वे मुझे ज्यादा मानने का ढोंग करते थे और बहाने से मेरे शरीर को छूने की कोशिश करते थे. मैं पूरी तरह उनकी मंशा से अनजान थी और उनकी उनकी इस हरकत को नॉर्मल समझ उनके साथ बैडमिंटन खेलती थी.


एक दिन उन्होंने अपने घर बुलाया और कहा कि अनीता आज मेरे यहॉ सेलिब्रेशन है तुम आओगी तो अच्छा लगेगा. मैं खुशी-खुशी चली गयी. वहॉ जाकर देखती हूं कि ऐसा कोई सेलिब्रेशन नहीं है और वे मेरा इंतजार कर रहे हैं. मैं थोड़ी अवाक थी उनके इस रूप को देखकर. उन्होंने घर के अन्दर बुलाया और हाथ पकड़कर मुझे चेयर पे बिठा दिया और पास में बैठ गए. मैंने कुछ नहीं कहा क्यूंकि हकीकत ये है कि अब भी मैं उनकी नियत जान नहीं सकी थी.


उन्होंने मेरा हाथ दुबारा पकड़ लिया और बिलकुल मुझपे छाते हुए कहने लगे ” अनीता आई लव यू” यकीन मानिए उस समय मेरे लिए प्यार का अर्थ वासना तो कतई नहीं था. मैंने थोड़ा सकपकाते और कुछ कौतुहल से कह दिया आई टू. और फिर तुरंत उनका रिएक्शन काफी खतरनाक हो गया. उन्होंने मुझे पकड़ने के लिए अपना पूरा बल लगा दिया. मैं छटपटाई और उन्हें जोर का धक्का देते हुए तेजी से बाहर निकली.


इस घटना के बाद मैं कभी भी उनके सामने जाने की हिम्मत नहीं कर सकी. हालांकि वे भी कभी मेरे सामने नहीं आए. लेकिन आज भी जब इसके बारे में सोचती हूं तो मर्दों के बारे में अपनी राय कभी अच्छी नहीं बना पाती. आप बताइए क्या इसमें भी मेरी ही गलती है. एक बच्ची जिसे कुछ भी ना पता हो उसे जब निशाना बनाया जाए तो उसके ऊपर क्या बीतती है ये शायद आप सभी समझ सकते हैं.

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