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उनकी निगाहें

अकेली जिंदगी की दास्तां
अकेली जिंदगी की दास्तां
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बदस्तूर जारी था उनका घूरना. बिना पलक झपकाए एकटक देख रहे थे वो… बस देखे जा रहे थे. वो ऐसे देख रहे थे जैसे पहले कभी ना देखा हो. कुछ सम्मोहन कर देने के अंदाज के साथ देखना उनका मेरे भी दिल में खलबली पैदा कर रहा था. पहले तो मुझे लगा कि शायद वे किसी शून्य में खोए हैं लेकिन जब मेरी नजरें उनसे मिलतीं तो उनकी भी पलक झपकती थी जिससे ये लग जाता था कि वो सिर्फ मेरे ऊपर अपनी निगाहें टिकाए हुए हैं.


मैं कम उमर की थी जबकि ये हादसा पेश आया मेरे साथ. मैं इसे हादसा इसलिए कह रही हूं क्यूंकि इसने मेरी जिंदगी में काफी कुछ उलट-पुलट करके रख दिया. मैं उस समय शायद पूरी तरह पुरुष के आकर्षण से अनजान थी. एक पुरुष को नारी में किस तरह की दिलचस्पी होती है ये जानना मेरे लिए तब थोड़ा मुश्किल था. और मैं भी समझ नहीं सकी कि आखिर वो क्यूं लगातार मुझे ही घूरे जा रहे हैं.


खैर वक्त चलता रहा और मैं उनकी बेशर्म नजरों से पीछा नहीं छुड़ा सकी. हर गली-चौराहे पे वो खड़े मिलते. मैं जहॉ जाती पता नहीं उन्हें कैसे पता चल जाता और वो वहॉ बिना नागा अपनी नजरों की मौजूदगी दर्शा देते. अब मैं परेशान भी होती थी साथ ही कहीं ना कहीं अच्छा भी लगता था कि कोई मुझे तलाश रहा है.


बस शायद यही शुरुआत थी मेरे बिगड़ने की. एक दिन ऐसा भी हुआ जबकि वो नजरें मुझे कहीं नहीं दिखीं और मैं बेचैन सी होने लगी. मैं खुद ही इंतजार करने लगी कि काश वो मुझे दिख जाएं और मैं लजा-शर्मा के अपनी नाराजगी जाहिर करूं. एक हफ्ते बीत गए इंतजार करते-करते लेकिन फिर भी मेरी इच्छा पूरी नहीं हो सकी. मैं हताश थी, निराशा का चरम मेरे दिलो-दिमाग पे तारी होने लगा. मुझे लगने लगा कि अब मेरे जीवन की सबसे जरूरी चीज वही बेशर्म नजरे हैं. और बस यहीं से मैंने अपने पे नियंत्रण खोना शुरू कर दिया और यहीं से शुरू होती है मेरे बर्बादी की कहानी.

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