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सभी मर्द एक जैसे आखिर क्यों

अकेली जिंदगी की दास्तां
अकेली जिंदगी की दास्तां
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आज कई दिनों तक अवसाद में रहने के बाद दिल ने कहा कि चलो जंक्शन पर चलते हैं. कम से कम यहॉ कुछ लोग तो होंगे जो मेरी बात, मेरे दर्द को जान सकेंगे और ये भी बताएंगे कि कैसे मैं अपने दर्द से मुक्ति पाऊं.


अभी कुछ दिन पहले ही मैंने इस ब्लॉग प्लेट्फॉर्म पर रजिस्टर किया और अपनी बात कही. अच्छा लगा ये जानकर कि कुछ लोग मेरी बात समझ रहे हैं. शायद उन्हें पता है कि लड़की होने का दर्द क्या है और तिस पर अकेली लड़की जिसे उसके अधिकांश लोगों ने त्याग दिया हो.


आज मैं जो कहने वाली हूं उसे मेरे सभी पढ़ने वाले जरूर ध्यान से पढ़ें साथ ही अपनी टिप्पणी से मुझे बताएं कि मैं सही हूं कि गलत.


मेरी नजर में औरत केवल भोग्या है. केवल पुरुषों के मनबहलाव के साधन के रूप में स्त्री का निर्माण किया गया है. विधाता ने स्त्री शरीर की रचना ऐसी बना ही रखी है कि वो चाह के भी कुछ नहीं कर सकती और अंततः उसे पुरुष की भोगवादी लालसा का शिकार हो जाना पड़्ता है.


हाय रे मजबूरी……….फिर भी इस स्थिति में उससे किसी विरोध की आवाज ना उठने की अपेक्षा की जाती है. यदि किसी स्त्री ने आवाज उठाने की चेष्टा की भी तो उसे चरित्रहीन, कुलटा, वेश्या आदि ना जाने किन किन उपाधियों से नवाजा जाता है.


मैं पूछती हूं कि क्या किसी स्त्री का स्वतंत्र होकर अकेले जीवनयापन करना गुनाह है?


जब पुरुष अकेले जीवन बिता सकता है और उस पर कोई लांक्षन नहीं लगाता तो यही बात स्त्री के लिए क्यूं नहीं हो सकती?


मुझे पूरा यकीं है आप मेरी बात मेरे प्रश्नों और मेरी जिज्ञासाओं का जवाब जरूर देंगे.

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